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सरिस्का का बाघ ST 2402: वाइल्डलाइफ प्रबंधन की नाकामी और सोशल मीडिया का तमाशा!

रेस्क्यू ऑपरेशन या सोशल मीडिया पर शो? वन विभाग पर उठे सवाल

सरिस्का का बाघ ST 2402: वाइल्डलाइफ प्रबंधन की नाकामी और खोखले संरक्षण के दावे

सरिस्का टाइगर रिजर्व का बाघ ST 2402, जो पिछले कई दिनों से ट्रैकिंग सिस्टम से लापता था, अब दौसा जिले के बांदीकुई क्षेत्र के गांवों में छिपा हुआ है। इस बाघ ने न केवल तीन ग्रामीणों पर हमला किया, बल्कि वन विभाग के रेस्क्यू वाहन को भी निशाना बनाया। इस घटना ने राजस्थान में वन्यजीव संरक्षण और प्रबंधन की गंभीर खामियों को उजागर कर दिया है।

बढ़ती बाघों की संख्या, सीमित संसाधन

सरिस्का में बाघों की बढ़ती संख्या एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन उनके लिए पर्याप्त टेरेटरी और संसाधनों की कमी उन्हें मानव बस्तियों में भटकने पर मजबूर कर रही है। ST 2402 भी नई टेरेटरी की तलाश में जंगल से बाहर निकल आया और आबादी वाले क्षेत्रों में आ गया। हालांकि, इस स्थिति में वन विभाग की ट्रैकिंग और मॉनिटरिंग की विफलता साफ झलकती है।

 

सोशल मीडिया पर रेस्क्यू या मनोरंजन?

इस पूरे मामले में सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान बाघ की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया और व्हाट्सएप पर वायरल हो रहे हैं। वनकर्मियों और अन्य लोगों द्वारा बाघ को खेतों और गांवों में भागते हुए कैद करना और इन वीडियो को प्रचारित करना, न केवल वन्यजीव प्रबंधन की गंभीरता को कम करता है, बल्कि बाघ के प्रति संवेदनशीलता की कमी को भी दर्शाता है। इन वीडियो का अनावश्यक प्रचार, बाघ के तनाव को और बढ़ा रहा है, जो पहले से ही अपने प्राकृतिक आवास से दूर है।

क्यों नहीं हो रहा है त्वरित ट्रैंकुलाइजेशन?

सबसे बड़ा सवाल यह है कि वन विभाग और उनकी रेस्क्यू टीम बाघ को ट्रैंकुलाइज करके सुरक्षित जंगल में वापस क्यों नहीं भेज रही? क्या यह प्रबंधन की असफलता है, या वन्यजीव संरक्षण के प्रति उदासीनता? ड्रोन, वाहन और दिनभर की मशक्कत के बावजूद बाघ को काबू में न करना वन विभाग की कार्यक्षमता पर सवाल उठाता है।

राजस्थान में वाइल्डलाइफ मैनेजमेंट की कमियां

1. अपर्याप्त ट्रैकिंग सिस्टम: बाघों को मॉनिटर करने के लिए जीपीएस और अन्य आधुनिक तकनीकों का अभाव है।

2. प्रशिक्षित स्टाफ की कमी: रेस्क्यू ऑपरेशन में विशेषज्ञ और कुशल वनकर्मी नहीं हैं।

3. संसाधनों की कमी: वन्यजीवों के बढ़ते संकट से निपटने के लिए उपकरण और इंफ्रास्ट्रक्चर पर्याप्त नहीं है।

4. समन्वय की कमी: सोशल मीडिया पर वीडियो और तस्वीरों के प्रचार से वन विभाग की आंतरिक नीतियों की कमी उजागर होती है।

 

क्या करना चाहिए?

1. बेहतर ट्रैकिंग और मॉनिटरिंग सिस्टम: सभी बाघों को जीपीएस कॉलर से लैस करना चाहिए।

2. रेस्क्यू ऑपरेशन में संवेदनशीलता: बाघ के वीडियो और तस्वीरें पब्लिक में शेयर करने की बजाय इन्हें गोपनीय रखा जाना चाहिए।

3. फंडिंग और संसाधन: राज्य सरकार को वाइल्डलाइफ मैनेजमेंट के लिए पर्याप्त बजट और इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराना चाहिए।

4. सतर्कता और जागरूकता: मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए गांवों में जागरूकता अभियान चलाना जरूरी है।

निष्कर्ष

सरिस्का के बाघ ST 2402 का यह मामला न केवल राजस्थान के वाइल्डलाइफ मैनेजमेंट की कमियों को उजागर करता है, बल्कि वन्यजीव संरक्षण के प्रति खोखले दावों की पोल भी खोलता है। अगर समय रहते इन खामियों को दूर नहीं किया गया, तो मानव और वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं और बढ़ेंगी, जो न केवल बाघों के लिए, बल्कि इंसानों के लिए भी खतरनाक साबित होंगी।

राज्य सरकार और वन विभाग को अब दिखावटी प्रचार से ऊपर उठकर वाइल्डलाइफ मैनेजमेंट में ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि राजस्थान में वन्यजीव संरक्षण का वास्तविक मॉडल प्रस्तुत किया जा सके।

 

 

 

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