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बाघों के री इंट्रोडक्शन की कहानी कहता सरिस्का

सुमित जुनेजा
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बाघों के री-इंट्रोडेक्शन की कहानी कहता है सरिस्का
सरिस्का में बाघों का कुनबा 43 हो गया है। किसी जमाने में बाघ विहिन होने का कलंक झेल चुका सरिस्का अब दुनिया में सिर उठा कर कह सकता है कि विश्व भर में बाघों के री-इंट्रोडेक्शन की सफलता की कहानी सरिस्का से शुरू होती है। प्रदेश के वन विभाग के अफसरों व कर्मचारियों की प्रतिबद्धता और वन्य जीव संरक्षण से जुड़े गैर सरकारी संगठनों व वन्यजीव प्रेमियों की आपसी समझ के कारण आज हम सरिस्का को पुनः बाघों से आबाद देख रहे हैं।
जयपुर । सरिस्का में बाघों का कुनबा 43 हो गया है। किसी जमाने में बाघ विहिन होने का कलंक झेल चुका सरिका अब दुनिया में सिर उठा कर कह सकता है कि विश्व भर में बाघों के री-इंट्रोडेक्शन की सफलता की कहानी सरिस्का से शुरू होती है। प्रदेश के वन विभाग के अफसरों व कर्मचारियों की प्रतिबद्धता और वन्य जीव संरक्षण से जुड़े गैर सरकारी संगठनों व वन्यजीव प्रेमियों की आपसी समझ के कारण आज हम सरिस्का को पुनः बाघों से आबाद देख रहे हैं।
सरिस्का में बाघों की दहाड़ सुनाई देने के पीछे संघर्ष और तकनीक की लंबी कहानी है। बाघों की वृद्धि और संरक्षण का जीता जागता उदाहरण राजस्थान का सरिस्का टाईगर रिजर्व है हाल ही में सरिस्का में एक माह में लगभग 12 नये बाघ शावकों के आने की सूचना से खुशी का माहौल बना है। यह संभव हुआ बाघों के री-इंट्रोडेक्शन से क्योंकि एक समय ऐसा आया जब वर्ष- 2005 में सरिस्का से बाघ पूरी तरह विलुप्त हो गए थे | इस घटना के बाद राजस्थान वन विभाग जागा और अब आलम यह है कि राजस्थान में बाघों का कुनबा तकरीबन 136 हो चुका है। बाघों की बढ़ती आबादी को संरक्षित करने के लिए इन दिनों वन विभाग कॉरिडोर बनाने की दिशा में काम कर रहा है। यह वाइल्डलाइफ कॉरिडोर जिसे बायोडॉयवर्सिटी कॉरिडोर या इकोलॉजी कॉरिडोर भी कहा जाता है यह कॉरिडोर जंगल के अलग-अलग हिस्सों के बीच एक पुल (ब्रिज) के रूप में काम करते हैं। जिससे वन्यजीवों को एक जगह से दूसरी जगह जाने में व टेरेटरी बनाने के साथ ही सुगम व स्वछंद विचरण करने में आसानी रहती है। इन कॉरिडोर के जरिए वन्यजीव अपने प्राकृतिक रूप से प्रजनन कर सकते हैं, वहीं वन क्षेत्र बढ़ने से उनकी सरवाइवल रेट भी बढ़ जाती है। जानवरों के शिकार पर भी रोक लगती है। वाइल्डलाइफ कोरिडोर बनाना और उन्हें संरक्षित करना हमारे लिए अत्यधिक फायदेमंद साबित होता है। इस कारण हम प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के साथ ही वन्जजीवों की संख्या में वृद्धि करने में व प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने सफल होते हैं साथ ही वन्यजीव भी जलवायु परिवर्तन के कारण उपजी विषम परिस्थितियों के अनुरूप अपने आप को ढ़ाल लेते हैं। जहां तक बाघों का सवाल है। बाघ अपने क्षेत्राधिकार के लिए काफी सजग रहते हैं। उनके प्राकृतिक वातावरण में कमी के कारण कॉरिडोर बनाना बेहद जरूरी हो गया है। एक नर बाघ के पास 60 से 100 वर्ग किलोमीटर तक का क्षेत्र हो सकता है, जबकि मादा के पास 20 वर्ग किलोमीटर तक, लेकिन ये संख्या निवास स्थान और उप-प्रजाति के अनुसार भिन्न होती है। वन क्षेत्र में कमी के परिणामस्वरूप, उनके क्षेत्र में कमी भी हो सकती है और उन्हें भोजन खोजने के लिए नए क्षेत्रों में जाना पड़ता है। बाघ एकान्तवासी होते हैं और अकेले रहना पसंद करते हैं। उन्हें अन्य बाघों के साथ तभी देखा जाएगा जब वे साथी की तलाश कर रहे हों या मादा बाघिनें जब अपने शावकों की देखभाल कर रहीं हो तब हम उन्हें समूह में पाते हैं। बाघ अपने क्षेत्र को मूत्र और गुदा ग्रंथि के स्राव से चिह्नित करते हैं। वे उसे पेड़ों पर छिड़कते हैं, जिससे तेज गंध निकलती है जिसे अन्य जानवर और अन्य साथी पहचान सकते हैं, ताकि वे जान सकें कि वे दूसरे के स्थान पर अतिक्रमण कर रहे हैं। हर बाघ अपने लिए एक विशेष क्षेत्र चुनता है, जिसे हम टेरेटरी मेकिंग के नाम से जानते हैं। प्रत्येक बाघ जब भी अपनी टेरेटरी में निकलता है तो उसकी यात्रा या घूमने का खास अंदाज होता है ताकि वे उपलब्ध शिकार को खोजने के लिए अपने आसपास के वातावरण से तालमेल बिठा सकें। बाघ घूमते हुए कहीं भी निकल जाए लेकिन यह भी तय है कि वह अपने घर वापस लौटता ही लौटता है।
सरिस्का में बाघों के री-इंट्रोडेक्शन पर एक नजरः 28 जून 2008 से 9 मार्च 2023 तक
ल 11 बाघ री- इंट्रड्यूस किए गए, जिनके कारण आज 43 बाघ हैं-
रणथम्भौर टाइगर रिजर्व से सर्वप्रथम 28 जून 2008 को एक नर बाघ T-10 को हेलीकॉप्टर द्वारा सरिस्का लाया गया जिसे सरिस्का में ST -1 नंबर दिया गया। इसी प्रकार 4 जुलाई 2008 को फिर से एक बाघिन T-1 को रणथंभौर से सरिस्का लाया गया जिसे ST-2 के नाम से जाना गया। 25 फरवरी 2009 को बाघिन T-18 जो ST-3 नाम से जाना गया। 20 जुलाई 2010 को T-12 नर बाघ ST-4 कहलाया। 28 जुलाई 2010 को T-44 बाघिन ST-5 कहलाई। 23 फरवरी 2011 को भरतपुर से T-07 नर बाघ ST-6 बना।
22 जनवरी 2013 को T-51 बाघिन को ST-9 नाम दिया गया। 24 जनवरी 2013 को T-52 बाघिन ST-10 कहा गया। 15 अप्रैल 2019 को T-75 नर बाघ ST-16 व 16 अक्टूबर 2022 को T-113 बाघिन ST-29 और 9 मार्च 2023 में T-134 बाघिन ST-30 कहा गया। हालांकि रीलोकेट किए गए बाघों में से कुछ की मृत्यु हो गई और कुछ एक आज तक लापता हैं।
सरिस्का टाइगर रिजर्व में पुनर्वास के बाद जन्मे वाघ शावक
| क्रमांक | वाघ शावक का आईडी | जन्म का वर्ष | टिप्पणी |
| 1 | ST 7 मादा | 2012 | ST 2 से जन्मी |
| 2 | ST 8 मादा | 2012 | ST 2 से जन्मी |
| 3 | ST 11 नर (मृत्यु: 19.03.2018) | 07/2014 | ST 10 से जन्मा |
| 4 | ST 12 मादा | 07/2014 | ST 10 से जन्मी |
| 5 | ST 13 नर (15.01.2022 से गायब) | 2014 | ST 2 से जन्मा |
| 6 | ST 14 मादा | 2014 | ST 2 से जन्मी |
| 7 | ST 15 नर | 04/2016 | ST 9 से जन्मा |
| 8 | ST 17 मादा | 04/2018 | ST 14 से जन्मी |
| 9 | ST 18 नर | 04/2018 | ST 14 से जन्मा |
| 10 | ST 19 मादा | 09/2018 | ST 12 से जन्मी |
| 11 | ST 20 नर | 09/2018 | ST 12 से जन्मा |
| 12 | ST 21 नर | 09/2018 | ST 12 से जन्मा |
| 13 | ST 22 मादा | 03/2020 | ST 10 से जन्मी |
| 14 | ST 23 नर | 05/2020 | ST 12 से जन्मा |
| 15 | ST 24 नर | 05/2020 | ST 12 से जन्मा |
| 16 | ST 25 नर | 05/2020 | ST 12 से जन्मा |
| 17 | ST 26 मादा | 12/2020 | ST 14 से जन्मी |
| 18 | ST 27 मादा | 12/2020 | ST 14 से जन्मी |
| 19 | ST 28 मादा | 12/2020 | ST 14 से जन्मी |
| 20 | शावक | 01/2022 | ST 19 से जन्मे |
| 21 | शावक | 01/2022 | ST 19 से जन्मे |
| 22 | शावक | 03/2022 | ST 17 से जन्मे |
| 23 | शावक | 03/2022 | ST 17 से जन्मे |
| 24 | शावक | 02/2023 | ST 14 से जन्मे |
| 25 | शावक | 02/2023 | ST 14 से जन्मे |
( यह आंकडे सरकारी तौर पर उपलब्ध हैं, लेकिन नवीन जानकारी के अनुसार सरिस्का में 43 बाघ हैं)