
सरिस्का टाइगर रिजर्व हमेशा से अपनी बाघों की मौजूदगी के लिए मशहूर रहा है, लेकिन अब यहां के जंगलों में एक नया रहस्य सामने आ रहा है। बाघों के अलावा, एक और शिकारी धीरे-धीरे अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहा है—हाइना। भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के वैज्ञानिकों द्वारा किए जा रहे शोध में इस बात का खुलासा हुआ है कि सरिस्का के जंगलों में हाइना की संख्या लगातार बढ़ रही है और वे अब इस जंगल में स्थायी रूप से बसने लगे हैं। यह एक ऐसा बदलाव है जो पूरे जंगल के पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर सकता है।
हाइना को अक्सर गलत समझा जाता है, लेकिन यह जंगल के लिए बेहद जरूरी प्रजाति है। यह केवल एक शिकारी नहीं, बल्कि प्रकृति का सफाईकर्मी भी है। जंगल में मरे हुए जानवरों को खाने से यह बीमारी फैलने से रोकता है और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखता है। वैज्ञानिकों ने सरिस्का में हाइना की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए अत्याधुनिक कैमरा ट्रैप तकनीक का उपयोग किया है। इन कैमरों में हाइना की तस्वीरें और उनके समूहों की गतिविधियां कैद हुई हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि अब यह क्षेत्र उनका स्थायी आवास बन चुका है।
हाइना आमतौर पर झुंड में रहना पसंद करते हैं और उनकी जीवनशैली बेहद दिलचस्प होती है। वे समूह में शिकार करने की क्षमता रखते हैं और बड़े-बड़े जानवरों पर भी हमला कर सकते हैं। लेकिन सरिस्का में इनका मुख्य भोजन मृत जानवर और छोटे जीव-जंतु हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि हाइना की बढ़ती संख्या का एक मुख्य कारण जंगलों में मिलने वाला भरपूर भोजन और मानवीय हस्तक्षेप का कम होना है। सरिस्का का घना जंगल और वहां मौजूद बड़ी घास के मैदान इन हाइना के लिए अनुकूल साबित हो रहे हैं।
जंगल में हाइना के बढ़ते प्रभाव को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने 12 किलोमीटर के इलाके में एक खास अध्ययन किया। इस अध्ययन के दौरान उनके आवास, शिकार करने की आदतें और व्यवहार पैटर्न को समझने के लिए 6×6 मीटर के ग्रीन नमूना बाड़े का उपयोग किया गया। इस शोध से यह भी पता चला कि हाइना अपनी रणनीति के अनुसार जगह बदलते रहते हैं और उनकी रात की गतिविधियां अधिक होती हैं।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि हाइना बेहद बुद्धिमान जीव होते हैं और वे मानवीय गतिविधियों के हिसाब से खुद को ढालने में माहिर होते हैं। जंगलों में बढ़ती चराई, अन्य मांसाहारी प्रजातियों के फैलाव और इंसानों की मौजूदगी के बावजूद हाइना अपने लिए नया ठिकाना तलाश रहे हैं। यह अध्ययन हमें यह भी सिखाता है कि किस तरह हाइना अपनी सुरक्षा के लिए सीमित शरणस्थलों का चुनाव करते हैं और अपने आवास के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।
सरिस्का में हो रहे इस शोध को वन्यजीव संरक्षण के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इससे यह जानने में मदद मिलेगी कि जंगलों में बाघ और हाइना एक साथ कैसे रह सकते हैं और इसका पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा। वन एवं पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि इस शोध के नतीजे लंबे समय तक जंगलों में मानवीय गतिविधियों और वन्यजीवों के सह-अस्तित्व को समझने में मदद करेंगे। हाइना की बढ़ती मौजूदगी सरिस्का के पारिस्थितिक तंत्र को एक नया मोड़ दे सकती है और इससे वन्यजीव संरक्षण के नए रास्ते खुल सकते हैं।
जंगल का संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी है कि सभी शिकारी और शाकाहारी प्रजातियां अपने प्राकृतिक आवास में सुरक्षित रहें। इस अध्ययन से यह भी स्पष्ट होता है कि हाइना को बचाने और उनके लिए सुरक्षित क्षेत्र विकसित करने की जरूरत है, ताकि जंगलों का प्राकृतिक संतुलन बरकरार रह सके। हाइना की बढ़ती संख्या यह भी दर्शाती है कि जंगल में शिकारियों की नई चुनौती खड़ी हो रही है, क्योंकि बाघों और तेंदुओं के साथ अब हाइना भी अपनी जगह बना रहे हैं।
सरिस्का में हो रहे इस अध्ययन से यह स्पष्ट हो गया है कि जंगल की दुनिया बेहद जटिल और रोमांचक है। हर जीव अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष कर रहा है और यह संघर्ष जंगल को जिंदा रखता है। आने वाले समय में यह शोध और अधिक रोचक जानकारियां सामने लाएगा और हमें यह समझने में मदद करेगा कि कैसे हम जंगल और वन्यजीवों के बीच संतुलन बनाए रख सकते हैं।