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सरिस्का टाइगर रिजर्व, राजस्थान का एक प्रमुख वन्यजीव अभयारण्य, जो अपनी समृद्ध जैव विविधता और बाघों की मौजूदगी के लिए जाना जाता है

सरिस्का टाइगर रिजर्व

अब एक महत्वपूर्ण बदलाव के दौर से गुजर रहा है। हाल ही में, सरिस्का बाघ परियोजना के क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट क्षेत्र के युक्तिकरण (Rationalization) को लेकर एक अहम बैठक आयोजित की गई, जिसमें वन विभाग, वैज्ञानिक विशेषज्ञों और विभिन्न प्रशासनिक अधिकारियों ने हिस्सा लिया। इस बैठक का उद्देश्य वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संरक्षित क्षेत्र के सीमांकन और सुधार को सुनिश्चित करना था।

यह पूरी प्रक्रिया सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन मामले के तहत अमल में लाई जा रही है, जहां सरिस्का के वन्यजीव आवास को और अधिक संरक्षित और सुरक्षित बनाने के लिए राज्य सरकार ने अपने प्रस्ताव प्रस्तुत किए हैं। इसी कड़ी में, राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव के निर्देश पर गठित समिति द्वारा सरिस्का टाइगर रिजर्व के संवेदनशील क्षेत्र को पुनः परिभाषित करने की सिफारिशें की गई हैं।

बैठक का आयोजन 19 मार्च 2025 को सरिस्का के इंटरप्रिटेशन सेंटर में किया गया, जहां वन संरक्षक संग्राम सिंह कटिहार, उप वन संरक्षक, अभिमन्यु सहारण,सरिस्का बाघ परियोजना के वरिष्ठ अधिकारी, उप वन संरक्षक,अलवर , राजेंद्र हुड्डा , विभिन्न वन्यजीव विशेषज्ञ और भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के फील्ड बायोलॉजिस्ट मौजूद रहे। इस दौरान सरिस्का टाइगर रिजर्व के क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट की वर्तमान स्थिति और उसके पुनर्गठन को लेकर गहन चर्चा की गई।

बैठक में यह स्पष्ट किया गया कि बाघों के प्राकृतिक आवास के संरक्षण के लिए वैज्ञानिक तौर पर नए सीमांकन की जरूरत है। इसके तहत सरिस्का और आसपास के क्षेत्र में वन्यजीवों की गतिविधियों, उनके पारिस्थितिकी तंत्र और मानव-वन्यजीव संघर्ष के संभावित खतरों का अध्ययन किया जाएगा। इस अध्ययन के आधार पर यह तय किया जाएगा कि किन क्षेत्रों को पूरी तरह संरक्षित रखा जाए और किन स्थानों को पर्यावरण संतुलन को ध्यान में रखते हुए पुनर्गठित किया जाए।

सरिस्का के कई प्रमुख अधिकारी, जिनमें बांदीकुई, दौसा, जमवारामगढ़, बानसूर, नारायणपुर, अखरपुर, टहला और अलवर वन क्षेत्र के अधिकारी शामिल थे, इस चर्चा का हिस्सा बने। इस दौरान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से भी विशेषज्ञों ने अपने सुझाव दिए। भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों ने बाघों के आवासीय पैटर्न और उनके प्राकृतिक व्यवहार पर विस्तृत डेटा प्रस्तुत किया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि सरिस्का में बाघों की संख्या बढ़ने के साथ उनके लिए अनुकूलित क्षेत्र बढ़ाने की आवश्यकता है।

बैठक में इस बात पर भी जोर दिया गया कि बाघों के संरक्षण को लेकर स्थानीय समुदायों की भूमिका को भी महत्व दिया जाना चाहिए। सरिस्का के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को वन्यजीव संरक्षण का हिस्सा बनाकर, उन्हें पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास की दिशा में जागरूक किया जाना जरूरी है।

इसके अलावा, वन विभाग और प्रशासन ने यह भी सुनिश्चित किया कि इस प्रक्रिया के तहत आदिवासी एवं वन आश्रित समुदायों के अधिकारों का पूरी तरह सम्मान किया जाएगा। इस परियोजना का उद्देश्य केवल संरक्षित क्षेत्र का विस्तार करना ही नहीं, बल्कि इंसान और वन्यजीवों के सह-अस्तित्व को भी सुनिश्चित करना है।

बैठक में वन विभाग के अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि जल्द ही इस प्रक्रिया को अमल में लाने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। प्राप्त सुझावों के आधार पर अंतिम रिपोर्ट तैयार कर राज्य सरकार और संबंधित न्यायिक संस्थाओं को प्रस्तुत की जाएगी। इसके बाद सरिस्का टाइगर रिजर्व के क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट के युक्तिकरण पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा।

सरिस्का टाइगर रिजर्व हमेशा से राजस्थान के वन्यजीव संरक्षण की एक मजबूत कड़ी रहा है। यहां बाघों की बढ़ती संख्या ने इसे एक महत्वपूर्ण बाघ अभयारण्य के रूप में स्थापित किया है। इस नए प्रस्ताव के तहत बाघों और अन्य वन्यजीवों के लिए बेहतर संरक्षण सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया जा रहा है।

अब देखने वाली बात यह होगी कि इस प्रक्रिया से सरिस्का को कितना लाभ मिलता है और यह योजना वन्यजीवों और स्थानीय समुदायों के बीच संतुलन स्थापित करने में कितनी सफल होती है। यह प्रयास न केवल राजस्थान बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणादायक कदम साबित हो सकता है, जिससे भारत के वन्यजीव संरक्षण कार्यक्रम को और मजबूती मिलेगी।

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